aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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صبح ہوتی ہے شام ہوتی ہے عمر یوں ہی تمام ہوتی ہے...
रायों के बंद रहने से तमाम इन्सानों की हक़-तल्फ़ी होती है और कुल इन्सानों को नुक़्सान पहुँचता है और न सिर्फ़ मौजूद इन्सानों को, बल्कि उनको भी जो आइन्दा पैदा होंगे।...
جو لوگ کہ حسنِ معاشرت اور تہذیبِ اخلاق و شائستگیِ عادات پر بحث کرتے ہیں ان کے لئے کسی ملک یا قوم کے کسی رسم و رواج کو اچھا اور کسی کو برا ٹھہرانا نہایت مشکل کام ہے۔ ہر ایک قوم اپنے ملک کے رسم و رواج کو پسند کرتی...
जब कुत्ते आपस में मिलकर बैठते हैं तो पहले तेवरी चढ़ा कर एक दूसरे को बुरी निगाह से आँखें बदल-बदल कर देखना शुरू’ करते हैं, फिर थोड़ी-थोड़ी गूँजीली आवाज़ उनके नथुनों से निकलने लगती है। फिर थोड़ा सा जबड़ा खुलता है और दाँत दिखाई देने लगते हैं और हल्क़ से...
ہم اپنے اس آرٹیکل کو ایک بڑے لائق اور قابل زمانہ حال کے فیلسوف کی تحریر سے اخذ کرتے ہیں۔ رائے کی آزادی ایک ایسی چیز ہے کہ ہر ایک انسان اس پر پورا پورا حق رکھتا ہے۔ فرض کرو کہ تمام آدمی بجز ایک شخص کے کسی بات پر...
Maqalat-e-Sir Syed
सर सय्यद अहमद ख़ान
मज़ामीन / लेख
लेख
Khutbaat-e-Sir Syed
व्याख्यान
मक़ालात-ए-सर सय्यद
Maktubat-e-Sir Syed
पत्र
مسلمانوں میں ترقی علوم کی ایک عجیب سلسلہ سے ہوئی ہے۔ سب سے اول بنیاد ترقی علوم کی جنگ یمامہ کے بعد حضرت ابو بکر صدیق رضی اللہ عنہ کی خلافت میں ہوئی کہ انہوں نے زید بن ثابت کو متعین کیا کہ قرآن مجید کو اول سے آخر تک...
اپنے اس آرٹیکل کو بعض بڑے بڑے حکیموں کی تحریروں سے اخذ کر کر لکھتے ہیں۔ کیا عمدہ قول ایک بڑے دانا کا ہے کہ ’’انسان کی زندگی کا منشایہ ہے کہ اس کے تمام قوی اور جذبات نہایت روشن اور شگفتہ ہوں اور ان میں باہم نامناسبت اور تناقض...
फ़क़ीह-ए-शहर से कुछ ख़ास दुश्मनी तो नहींफ़क़ीह-ए-शहर से लेकिन ठनी सी रहती है
बड़े बड़े हकीम और आलिम, वली-ओ-अब्दाल, नेक-ओ-अक़्ल-मंद, बहादुर-ओ-नाम-वर एक गँवार आदमी की सी सूरत में छुपे हुए होते हैं मगर उनकी ये तमाम खूबियाँ उम्दा तालीम के ज़रिए से ज़ाहिर होती हैं। (तहज़ीब-उल-अख़्लाक़ बाबत यकुम शव्वाल 1289 हिज्री)...
बे-इल्मी मुफ़्लिसी की माँ है। जिस क़ौम में इल्म-ओ-हुनर नहीं रहता वहाँ मुफ़्लिसी आती है और जब मुफ़्लिसी आती है तो हज़ारों जुर्मों के सरज़द होने का बाइस होती है। (तक़रीर-ए- जलसा-ए-अज़ीमाबाद पटना, 26 मई)...
सबसे बड़ा ऐब हम में ख़ुद-ग़रज़ी का है और यही मुक़द्दम सबब क़ौमी ज़िल्लत और ना-मुहज़्ज़ब होने का है। हम में से हर एक को ज़रूर है कि रिफ़ाह-ए-आम का जोश दिल में पैदा करें और यक़ीन जानें कि ख़ुद-ग़रज़ी से तमाम क़ौम की और उसके साथ अपनी भी बर्बादी...
हम लोग आपस में किसी को हिंदू, किसी को मुसलमान कहें मगर ग़ैर-मुल्क में हम सब नेटिव (Native) यानी हिन्दुस्तानी कहलाए जाते हैं। ग़ैर-मुल्क़ वाले ख़ुदा-बख़्श और गंगा राम दोनों को हिन्दुस्तानी कहते हैं। (तक़रीर-ए-सर सय्यद जो अंजुमन इस्लामिया, अमृतसर के ऐडरेस के जवाब में 26 जनवरी 1884 ई. को...
मैं अपनी ज़बान से वो मुराद लेता हूँ जो किसी मुल्क में इस तरह पर मुस्तामल हो कि हर शख़्स उस को समझता हो और वो उस में बातचीत करता हो। ख़्वाह वो उस मुल्क की असली ज़बान हो या न हो और उसी ज़बान पर मैं वरनेकुलर के लफ़्ज़...
कल पहली बार उस से इनायत सी हो गईकुछ इस तरह कि मुझ को शिकायत सी हो गई
दुबली-पतली मियाना क़द कीअच्छे ख़ासे ख़ाल-ओ-ख़द की
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