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ग़ज़ल
दीदा-ए-बे-रंग में ख़ूँ-रंग मंज़र रख दिए
हम ने इस दश्त-ए-तपाँ में भी समुंदर रख दिए
बख़्श लाइलपूरी
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ग़ज़ल
क्या मुहीत-ए-मय-ए-बे-रंग में तूफ़ाँ आया
जोश-ए-रंग अंजुमन-ए-नाज़ से बाहर गुज़रा
अब्दुल हादी वफ़ा
नज़्म
अलिफ़ लफ़्ज़ ओ मआनी से मुबर्रा
तसलसुल साँस की ज़ंजीर-ए-आहंग
तसलसुल ख़्वाब की ताबीर-ए-बे-रंग