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नज़्म
कलियों को चटकते देखा है
इन मौक़ा-परस्तों की महफ़िल में
साज़ों को बदलते देखा है
डॉ.शाहिदा सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ज़िंदगी से सीख लीं हम ने भी दुनिया-दारियाँ
रफ़्ता रफ़्ता तुम में भी मौक़ा-परस्ती आ गई