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ग़ज़ल
मज़ा क्या उस बुत-ए-बे-पीर से दिल के लगाने का
जो ख़ल्वत में हो बुत महफ़िल में हो तस्वीर की सूरत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
वा'इज़ तू बाग़-ए-हुस्न की इक बार सैर कर
मुमकिन है दिलकशी में हो ख़ुल्द-ए-बरीं शरीक
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
शिकस्त-ए-बे-सुतून-ओ-मौज-ए-जू-ए-शीर शाहिद हैं
नहीं आसान राह-ए-इश्क़ का हमवार हो जाना
शोला करारवी
नज़्म
मताअ'-ए-शे'र
मताअ'-ए-शेर लिखूँ शेर का जमाल लिखूँ
सुलूक लहजे का उस के कि जैसे अमृत-रस
मुस्लिम शमीम
ग़ज़ल
सहरा में जा के देख कि हर रूद-ए-ख़ुश्क को
हम रंग-ए-जू-ए-शीर बनाती है चाँदनी