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ग़ज़ल
न तन्हा मैं ही दम भरता हूँ तेरी आश्नाई का
जहाँ में शोर है ऐ शोख़ तेरी दिलरुबाई का
मोहम्मद इब्राहीम आजिज़
ग़ज़ल
न तन्हा मैं ही दम भरता हूँ तेरी आश्नाई का
जहाँ में शोर है ऐ शोख़ तेरी दिल-रुबाई का
मोहम्मद इब्राहीम आजिज़
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कुल्लियात
क्या करें तदबीर दिल मक़्दूर से बाहर है अब
ना-उमीद इस ज़िंदगानी करने से अक्सर है अब
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
बे-मेहर-ओ-वफ़ा है वो क्या रस्म-ए-वफ़ा जाने
उल्फ़त से मोहब्बत से मिल बैठना क्या जाने
मीर तक़ी मीर
नज़्म
पहला पत्थर
मैं तिरे शहर में फिरता ही रहा सरगर्दां
शाह-राहों के हर इक मोड़ पे हैराँ हैराँ
मुसव्विर सब्ज़वारी
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
पेशा हो जिस का कीना-ओ-जौर-ओ-जफ़ा तो है बजा
जल्वा-फ़गन हो किस लिए मेहर-ओ-करम से क्या ग़रज़