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ग़ज़ल
रहे वो गोश-बर-आवाज़ या सो जाए 'मिदहत'
ये मेरा क़िस्सा-ए-ग़म है बयाँ करता रहूँगा
मिद्हत-उल-अख़्तर
ग़ज़ल
मैं जो दुश्मन के बुलावे पर निकल आया हूँ 'मिदहत'
बर-सर-ए-मैदान में कुछ ठानना ही चाहता हूँ
मिद्हत-उल-अख़्तर
ग़ज़ल
फिर किसी कूफ़े में तन्हा है कोई इब्न-ए-अक़ील
उस के साथी सब के सब सरकार की टोली में थे
आल-ए-अहमद सुरूर
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ग़ज़ल
बाइ'स-ए-तस्कीन है 'वारिस' हर घड़ी मेरे लिए
मिदहत-ए-ख़ैर-उल-बशर महबूब-ए-रब्बानी की बात
वारिस रियाज़ी
नअत
जब फ़िक्र में घुल जाता है यादों का तक़द्दुस
करता हूँ रक़म मिदहत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
ज़ौक़ी मुज़फ्फ़र नगरी
ग़ज़ल
मदहत-ए-साक़ी-ए-कौसर तुझ को लिखनी है 'क़लक़'
पहले आब-ए-हौज़-ए-कौसर से नहाना चाहिए