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ग़ज़ल
होगा पुर-नूर सियह-ख़ाना हमारे दिल का
इस में तुम ग़ौस-ए-ख़ुदा को ज़रा आ जाने दो
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
दाग़ बन कर तो रहा दामन-ए-क़ातिल पे मगर
बू-ए-ख़ूँ बहर-ए-ख़ुदा बू-ए-वफ़ा हो जाना
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
ग़ैर के ख़ातिर धरा जाता हूँ मैं मुफ़्त-ए-ख़ुदा
कोई मुल्ज़िम हो वो बुत देता मुझी को दोस है
शाद लखनवी
ग़ज़ल
ये इश्क़ 'जमीला' का ऐ ख़िज़्र-ए-रह-ए-उल्फ़त
महबूब के जल्वे को असरार-ए-ख़ुदा जाना
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
जो कुछ देखा न देखा जो सुनी वो अन-सुनी 'शाइर'
न आए हम यहाँ ये ज़िंदगी मुफ़्त-ए-ख़ुदा लाई
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
ख़ुदा हाफ़िज़ है अपना देखिए कैसी गुज़रती है
बड़ी मुश्किल है राह-ए-इश्क़ का दुश्वार हो जाना
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
तुम जा रहे हो जाओ ऐ बुत मिरा ख़ुदा है
सीने को रंज-ए-फ़ुर्क़त पत्थर जिगर करूँगा