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ग़ज़ल
मिलेगा मुल्क-ए-ख़ूबी या मताअ-ए-सरगिरानी
मैं अपने नाम का सिक्का रवाँ करता रहूँगा
मिद्हत-उल-अख़्तर
नज़्म
दिल-आशोब
यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया
इक धुँद मिली जिस राह में पैक-ए-ख़याल गया
इब्न-ए-इंशा
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ग़ज़ल
ऐ ज़ुल्फ़ फैल फैल के रुख़्सार को न ढाँक
कर नीम-रोज़ की न शह-ए-मुल्क-ए-शाम हिर्स
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला
दो फ़रंगी सैर को निकले हैं मुल्क-ए-शाम से
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तुम्हें दरिया-ए-ख़ूबी कह दिया ग़र्क़-ए-नदामत हूँ
कहाँ ये नाज़-ओ-ग़म्ज़ा आरिज़-ओ-काकुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
इल्म-ओ-हुनर है मुल्क को दरकार आज-कल
हम ख़ुद भले-बुरे के हैं मुख़्तार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सुर्ख़ी के सबब ख़ूब खिला है गुल-ए-लाला
आरिज़ में लबों में कफ़-ए-दस्त ओ कफ़-ए-पा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
शाद लखनवी
कुल्लियात
उस मिरे नौ-बावा-ए-गुलज़ार-ए-ख़ूबी के हुज़ूर
और ख़ूबाँ जूँ ख़िज़ाँ के गुल हैं मुरझाए हुए
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तग़ाफ़ुल मत करो ऐ नौ-बहार-ए-गुलशन-ए-ख़ूबी
तुम्हारे बिन निपट बे-आब है दिल का चमन प्यारे
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है