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ग़ज़ल
अब वही नज़रें जो देती थीं शुऊ'र-ए-हस्ती
हम को ना-कर्दा गुनाही की सज़ा देती हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
नज़्म
भगवान 'कृष्ण' की तस्वीर देख कर
तुझे मैं आज तक मसरूफ़-ए-दर्स-ओ-वा'ज़ पाता हूँ
तिरी हस्ती मुकम्मल आगही महसूस होती है
कँवल एम ए
ग़ज़ल
किसी दिन मुझ को ले डूबेगा हिज्र-ए-यार का सदमा
चराग़-ए-हस्ती-ए-मौहूम होगा गुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
शेर
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
ग़ैरों ने बैठने न दिया जब कहीं मुझे
मैं अंजुमन में मुन्तज़िम-ए-अंजुमन हुआ