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ग़ज़ल
अगर इस पे बैठ जाता कोई मुर्ग़-ए-ना-उमीदी
मिरा नख़्ल-ए-आरज़ू फिर कहाँ साया-दार होता
ज़ुल्फ़िकार नक़वी
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ग़ज़ल
ये तंज़-ए-तर्क-ए-उल्फ़त गोशा-गीर-ए-ना-उमीदी पर
नहीं यूँ चुटकियाँ लेते नहीं दुखते हुए दिल में
मानी जायसी
ग़ज़ल
सुना है बे-नियाज़ी ही इलाज-ए-ना-उमीदी है
ये नुस्ख़ा भी कोई दिन आज़मा कर देख लेता हूँ
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
बस हुजूम-ए-ना-उमीदी ख़ाक में मिल जाएगी
ये जो इक लज़्ज़त हमारी सई-ए-बे-हासिल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ाक रहता इस हुजूम-ए-ना-उमीदी में निशाँ
मिट गए सब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ मिलता नहीं
नज़ीर हुसैन सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
आस क्या अब तो उमीद-ए-ना-उमीदी भी नहीं
कौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे