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ग़ज़ल
मूबाफ़-ए-सुर्ख़ चोटी से क्या उन की खुल पड़ा
एक साइक़ा सा दिल पे मिरे ना-गहाँ गिरा
शैख़ अली बख़्श बीमार
ग़ज़ल
गुल-गूना-ए-तरक़्क़ी-तहज़ीब-ओ-'इल्म से
शुक्र-ए-ख़ुदा कि सुर्ख़ हैं रुख़्सार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
शोला-ए-हुस्न-ए-बुताँ फूँक न दे आलम को
सुर्ख़ हैं फूल से रुख़्सार बड़ी मुश्किल है
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़
हो जाए न परतव से तिरे कौन-ओ-मकाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
पी बादा-ए-अहमर तो ये कहने लगा गुल-रू
मैं सुर्ख़ हूँ तुम सुर्ख़ ज़मीं सुर्ख़ ज़माँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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ग़ज़ल
ऐ परी-पैकर तिरा मेरे ही दम तक था बनाव
सुर्ख़ मूबाफ़ ओ लिबास-ए-ज़ाफ़रानी अब कहाँ
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
गोशे गोशे में फ़रोज़ाँ आतिश-ए-लब-हा-ए-सुर्ख़
इस शफ़क़ में दम-ब-दम आँखों को नहलाता हूँ मैं
ज्ञान चंद जैन
कुल्लियात
चश्म-ए-सफ़ेद-ओ-अश्क-ए-सुर्ख़ आह-ए-दिल-ए-हज़ीं है याँ
शीशा नहीं है मय नहीं अब्र नहीं हवा नहीं