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ग़ज़ल
वो दिन भी कोई दूर नहीं ऐ दिल-ए-‘नादाँ’
ये तोहमतें भी होंगी मिरी ज़ात का ज़ेवर
इंद्र सुरूप दत्त नादान
ग़ज़ल
आओ 'नादाँ' आज उस नासूर का मातम करें
जो ख़िराज-ए-ज़िंदगी ले कर भी हम को खा गया
इंद्र सुरूप दत्त नादान
ग़ज़ल
नासेह-ए-नादाँ का शिकवा करना है बिल्कुल फ़ुज़ूल
वो तो पागल है कोई क्यूँ जाए फिर पागल के पास
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
तू क्या जाने मोहब्बत के मज़े ऐ नासेह-ए-नादाँ
पहुँच तिरी निगाहों की फ़क़त सूद-ओ-ज़ियाँ तक है
आसी आरवी
ग़ज़ल
नासेह-ए-नादाँ तिरी क़िस्मत में ये वक़अत कहाँ
ख़ुश-नसीबों के लिए है ज़िल्लत-ओ-दुश्नाम-ए-इश्क़
ज़हीर देहलवी
ग़ज़ल
वक़्त के नादाँ परिंदे ज़ोम-ए-दानाई के गिर्द
ख़ूब-सूरत ख़्वाहिशों के दाम ले कर आए हैं