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ग़ज़ल
वो सोज़-ओ-साज़ वो नग़्मा ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ
मिटा के हम को ज़माना बहुत ख़राब हुआ
उमा शंकर शादाँ ग्वालियरी
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ग़ज़ल
कर बैठे तर्क-ए-इश्क़ हम चाक-ए-गरेबाँ सी लिया
'नग़्मा' भी ख़ुद हैरान है हम पारसा इतने न थे
रूपा मेहता नग़मा
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
किस ख़ता पर ये उठाना पड़ी रातों की सलीब
हम ने देखा था अभी ख़्वाब-ए-सहर ही कितना