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नज़्म
जावेद के नाम
दयार-ए-इश्क़ में अपना मक़ाम पैदा कर
नया ज़माना नए सुब्ह ओ शाम पैदा कर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साल-ए-नौ
गुज़िश्ता दौर तो गुज़रा है कर्बनाकी में
नया ज़माना हसीं मंज़रों के साथ आए
ज़ुबैर अहमद सानी
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नज़्म
पंद्रह अगस्त
हज़ारों चीज़ें वो दुनिया को दे रहा है आज
नया ज़माना लिए इक उमंग आया है
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
कई ज़बानों ने चख लिया है नया ज़माना
कई ज़बानों पे अब भी माज़ी के ज़ाइक़े हैं
क़ासिम रज़ा मुस्तफ़ाई
नज़्म
मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले
जो आज नश्व-ओ-नुमा का नया ज़माना है
ये इंक़लाब तिरी उम्र का फ़साना है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
नज़्र-ए-इक़बाल
तू शहर-ए-इल्म के दर का फ़क़ीर है तो 'अदील'
''नया ज़माना नए सुब्ह-ओ-शाम पैदा कर''
अदील ज़ैदी
ग़ज़ल
नया ज़माना भूल चुका है गए ज़माने की क़द्रें
जब चेहरों की भीड़ लगी हो कुछ तो अपना पढ़ना तुम