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ग़ज़ल
आसमाँ वाले हैं क्यों महव-ए-समाअ'त ऐ 'मुजीब'
कौन गोया ये सर-ए-नोक-ए-सिनाँ होता है
सय्यद मुजीबुल हसन
ग़ज़ल
कुछ जो कहते हैं तो कटती है ज़बाँ क्या कहिए
सरगुज़श्त अपनी सर-ए-नोक-ए-सिनाँ क्या कहिए