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नज़्म
इंतिसाब
दूसरी मालिये के बहाने से सरकार ने काट ली है
जिस की पग ज़ोर वालों के पाँव-तले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
आज ज़रा ललचाई नज़र से उस को बस क्या देख लिया
पग-पग उस के दिल की धड़कन उतरी आए पायल में
जाँ निसार अख़्तर
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ग़ज़ल
अब चलना है तो चलना है क्या पाँव के छालों को देखें
इस धरती की पग-डंडी से कोई ठिकाना पा जाएँ
सालिक लखनवी
नज़्म
बगिया लहूलुहान
पग पग मौत के गहरे साए जीवन मौत समान
चारों ओर हवा फिरती है ले के तीर कमान
हबीब जालिब
ग़ज़ल
पग पग काँटे मंज़िलों सहरा कोसों जंगल बेले हैं
सफ़र-ए-ज़ीस्त कठिन है यारो राह में लाख झमेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
राह दुश्वार है पग पग पे हैं काँटे लेकिन
राह-रौ के लिए मंज़िल का इशारा है बहुत
एलिज़ाबेथ कुरियन मोना
ग़ज़ल
बेकल उत्साही
ग़ज़ल
नैना अँझूँ सूँ धोऊँ पग अप पलक सूँ झाडूँ
जे कुई ख़बर सो लियावे मुख फूल का तुम्हारा
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
भरा मैं ने बिंदराबन में जो अरे किश्न होप का नारा तो
महाराज नाचते कूदते चले आए लट-पटी पाग से