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ग़ज़ल
दो थके-हारे दिलों ने इक नदी पर रात की
थी मगर जज़्बों में वो पहली सी तुग़्यानी न थी
अदनान मोहसिन
ग़ज़ल
रब जो कुन कह दे तो फिर क्या नहीं मुमकिन यारा
तुम मिरे होते अगर उस का इशारा होता
फौज़िया अख़्तर अज़्का
ग़ज़ल
फिर होए फ़ुज़ूँ दौलत 'अख़्तर' ये दुआ दे तू
ये फ़क़रा-ए-पीराना इक राज से अफ़्ज़ूँ है