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ग़ज़ल
घर के गुल-दानों में 'शाहिद' फूल होंगे काग़ज़ी
और पर्दों पर ''प्रिेंटेड'' तितलियाँ रह जाएँगी
सरफ़राज़ शाहिद
लेख
कौसर मज़हरी
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ग़ज़ल
इक दिन जब बूढे पेंटर के पास शराब के पैसे नहीं थे
छत पर ये घनघोर घटा तब से इस पब का हिस्सा है
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
हर रंग में हैं पाते बंदे ख़ुदा के रोज़ी
है पेंटर तो फिर क्या रंगरेज़ है तो फिर क्या