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मैंने कभी पुख़्ताकार मौलवी या मेज़ाह निगार को महज़ तक़रीर-ओ-तहरीर की पादाश में जेल जाते नहीं देखा।...
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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ग़ज़ल
इस क़दर दुश्वारियों का ये बड़ा एहसान है
हादसों का सिलसिला ईमान पुख़्ता कर गया
मशकूर ममनून क़न्नौजी
ग़ज़ल
'अजीब चीज़ है नज़रों की पुख़्ता-गीरी भी
जो पुख़्ता-कार बहुत थे वो ख़ाम भी निकले
उस्ताद अज़मत हुसैन ख़ाँ
ग़ज़ल
ये फ़र्ज़ानों की दुनिया एक दीवानों की दुनिया है
जो पुख़्ता-कार-ए-उल्फ़त हैं उन्हें कहते हैं सौदाई
ख़ार देहलवी
ग़ज़ल
आसाँ नहीं मु'आमला उस पुख़्ता-कार से
लेता है जिंस-ए-दिल को भी सौ बार देख कर