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ग़ज़ल
लुत्फ़ आए जो शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन सो जाए
क्यूँकि वो गोश-बर-आवाज़ नज़र आते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सुनता है कौन आशिक़ों की आह-ओ-ज़ारियाँ
गोश-ए-चमन को शोर-ए-अनादिल से क्या ग़रज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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नज़्म
कौन सी उलझन को सुलझाते हैं हम?
क़ुर्ब-ए-चश्म-ओ-गोश से हम कौन सी उलझन को सुलझाते रहे!
कौन सी उलझन को सुलझाते हैं हम?
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
वाँ करम को उज़्र-ए-बारिश था इनाँ-गीर-ए-ख़िराम
गिर्ये से याँ पुम्बा-ए-बालिश कफ़-ए-सैलाब था