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ग़ज़ल
कोई आज़ुर्दा करता है सजन अपने को हे ज़ालिम
कि दौलत-ख़्वाह अपना 'मज़हर' अपना 'जान-ए-जाँ' अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
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रेख़्ता शब्दकोश
aaj kal jangal me.n sonaa uchhaalte chale jaa.o ko.ii nahii.n puuchhtaaaa
आज कल जंगल में सोना उछालते चले जाओ कोई नहीं पूछताآج کل جنگل میں سونا اچھالتے چلے جاؤ کوئی نہیں پوچھتا
ऐसा अम्न है कि कोई किसी को नहीं टोकता
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ग़ज़ल
ख़ुद इश्क़ क़ुर्ब-ए-जिस्म भी है क़ुर्ब-ए-जाँ के साथ
हम दूर ही से उन को पुकार आए ये नहीं
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ख़ाक-ए-दिल
लखनऊ मेरे वतन मेरे चमन-ज़ार वतन
तेरे गहवारा-ए-आग़ोश में ऐ जान-ए-बहार