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ग़ज़ल
फ़ारूक़ बाँसपारी
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
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नज़्म
अहसन तक़्वीम
ऐवान-ए-ज़र-ओ-सीम में महशर हुआ बरपा
ख़ाइफ़ हमा-तन लश्कर-ए-शद्दाद है हम से
बेबाक भोजपुरी
ग़ज़ल
मर्द-ए-दरवेश का सरमाया है आज़ादी ओ मर्ग
है किसी और की ख़ातिर ये निसाब-ए-ज़र-ओ-सीम
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सब कुछ अल्लाह ने दे रक्खा है माल-ओ-ज़र-ओ-सीम
हैं मगर अहल-ए-दुवल अक़्ल-ओ-ख़िरद के मुहताज
शौक़ बहराइची
नज़्म
हुसूल-ए-आज़ादी की दिक़्क़तें
लीडरों से होंगे वादे ख़िलअत-ओ-इनआम के
क़िल्लत ओ कसरत का हंगामा उठाया जाएगा
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
दर्द-ए-मुश्तरक
सिम-सिम-ए-सीम से खुल जाते हैं उक़दों के पहाड़
जगमगा उठते हैं फूलों के दिए सहरा में
अहमद राही
नज़्म
तुलसीदास
अपने मज़हब के मसाइल से तबीअ'त थी नुफ़ूर
रहते थे ज़िक्र-ए-बुतान-ए-सीम-तन की धुन में चूर