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नज़्म
इतना मालूम है!
यूँही बे-वज्ह किसी शख़्स को रोका होगा!
इत्तिफ़ाक़न मुझे उस शाम मिरी दोस्त मिली
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
ख़ुद अपनी तमन्नाओं के पहरे में है हस्ती
कब चाँद किसी शख़्स के हाथों में खिला है