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क़िस्सा
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
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शेर
क्यूँकि होवे ज़ाहिद ख़ुद-बीं मुरीद-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
उस ने सारी उम्र में ज़ुन्नार कूँ देखा न था
सिराज औरंगाबादी
शेर
हिज्र की रातों में लाज़िम है बयान-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
नींद तो जाती रही है क़िस्सा-ख़्वानी कीजिए
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
सौदा हुआ है जिस को रुख़-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार का
क्या ख़ौफ़ उस को गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार का
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
अब तो मुक़ाबला है रुख़-ओ-ज़ुल्फ़-ए-यार में
है फ़स्ल का मुबाहिसा लैल-ओ-नहार में
नवाब नजीर अल दोला
कुल्लियात
बे-रवी ओ ज़ुल्फ़-ए-यार है रोने से काम याँ
दामन है मुँह पे अब्र-ए-नमत सुब्ह-ओ-शाम याँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
बे-रवी ओ ज़ुल्फ़-ए-यार है रोने से काम याँ
दामन है मुँह पे अब्र-ए-नमत सुब्ह-ओ-शाम याँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ऐ ज़ुल्फ़-ओ-रुख़-ए-यार तिरी शो'बदा-बाज़ी
महमूद सा फ़ातेह भी है मफ़्तूह-ए-अयाज़ी