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ग़ज़ल
हम भी कुछ देर को चमके थे कि बस राख हुए
सच तो ये है कि रम-ओ-रक़्स-ए-शरर ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
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ग़ज़ल
शौक़ की आग नफ़स की गर्मी घटते घटते सर्द न हो
चाह की राह दिखा कर तुम तो वक़्फ़-ए-दरीचा-ओ-बाम हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
क़दम मिला के चलो
क़दम मिला के चलो हाँ क़दम मिला के चलो
वतन की राह में अहल-ए-वतन निभा के चलो
राम लाल वर्मा हिंदी
ग़ज़ल
काटते हैं रात दिन चक्कर तिरे कूचे का हम
तुझ से फ़ुर्सत पाएँ तो फिर सैर-ए-‘आलम भी करें