aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "rah-rah"
दफ़्तर चराग़-ए-राह, कराची
पर्काशक
मक्तबा निशान-ए-राह, नई दिल्ली
मक्तबा चिराग़-ए-राह, कराची
मक्तबा चराग़-ए-राह, लाहौर
नई राह पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद
मश'अल-ए-राह पब्लिकेशंस, बिजनौर यू. पी.
मक्तबा राह-ए-इस्लाम, देवबंद, उ. प्र.
मकतबा नई राह, मुम्बई
Intisharat Dar Rah-e-Haq, Qum
संपादक
इदारा बज़्म-ए-ख़िज़्र राह, नई दिल्ली
गीताञ्जलि राय
born.1990
शायर
सईद राही
नासिर राव
आदिल राही
born.1993
इस्माईल राज़
रह रह के मुझे इतना सताती है उदासीआँसू मिरी आँखों से चुराती है उदासी
रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँतुम याद कर रहे हो कि याद आ रहे हो तुम
तू भी रह रह के मुझ को याद करेमेरा भी दिल तिरी पनाह में है
रात दमकती है रह रह कर मद्धम सीखुले हुए सहरा के हाथ पे नीलम सी
दिल को रह रह के इंतिज़ार सा हैक्या किसी सम्त कुछ ग़ुबार सा है
हर मौक़े पर याद आने वाले कई शेर देने वाले विख्यात शायर , मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन।
स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य। ' इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ' का नारा दिया। कृष्ण भक्त , अपनी ग़ज़ल ' चुपके चुपके, रात दिन आँसू बहाना याद है ' के लिए प्रसिद्ध।
लोकप्रिय शायर और फि़ल्म गीतकार प्रेम रोग और राम तेरी गंगा मैली के गीतों के लिए मशहूर
रह-रहرہ رہ
stay, remain, stop, be, continue to live
often
राग राग मिट्टी
अज़रा परवीन
कविता
Gard-e-Rah
अख़्तर हुसैन रायपुरी
आत्मकथा
Rag Ram Kali
शरवण कुमार वर्मा
अफ़साना
Zaad-e-Raah
प्रेमचंद
Khizr-e-Rah
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
Khizar-e-Rah
Aur Main Sochta Rah Gaya
अजमल सिराज
ग़ज़ल
Aain-ul-Wilaayat
मुंशी विलायत अली ख़ान, विलायत
चिश्तिय्या
Rah Gai Rasm-e-Azan Rooh-e-Bilali Na Rahi
मोहम्मद बदीउज़्ज़माँ
Nazariya-e-Pakistan Number : Shumara Number-012
ख़ुर्शीद अहमद
चराग़-ए-राह
Shah-Rah-e-Zindagi Par Kamyabi Ka Safar
मोहम्मद बशीर जुमा
Nuqoosh-e-Rah
मोहम्मद इनायतुल्लाह
Zaad-e-Rah
जलील अहसन नदवी
कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह करअब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा
क्या ही रह रह के तबीअ'त मिरी घबराती हैमौत आती है शब-ए-हिज्र न नींद आती है
ये जो रह रह के धुआँ उठता हैआग भी होगी जहाँ उठता है
सहरा में रह रह चमके ख़ून की एक लकीरइक ज़ख़्मी आवाज़ किसी की हुई दिलों में तीर
रह रह के होती जाती है दुनिया तमाम-शुदहोता नहीं है इश्क़ का क़िस्सा तमाम-शुद
दिल को रह रह के ये अंदेशे डराने लग जाएँवापसी में उसे मुमकिन है ज़माने लग जाएँ
इस एक बात पे रह रह के दिन गुज़ारे हैंकिसी के हो न सके हम सो अब तुम्हारे हैं
ये अलग बात कि रह रह के सदा आई हैमैं ने भी अब के न सुनने की क़सम खाई है
दिल में रह रह के शोर उठता हैकोई रहता है इस मकान में क्या
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