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ग़ज़ल
रहीन-ए-वज़-ए-बुज़ुर्गाँ है अपना दिल या'नी
तिरे ही शहर में तुझ से हज़ार गुज़रे हैं
जमीलुद्दीन आली
नज़्म
भगवान 'कृष्ण' की तस्वीर देख कर
तुझे मैं आज तक मसरूफ़-ए-दर्स-ओ-वा'ज़ पाता हूँ
तिरी हस्ती मुकम्मल आगही महसूस होती है
कँवल एम ए
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ग़ज़ल
नहीं शराब से रंगीं तो ग़र्क़-ए-ख़ूँ हैं कि हम
ख़याल-ए-वज़्-ए-क़मीस-ओ-लिबादा रखते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ज़ख़्म मिलते हैं इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल मिलता नहीं
वज़-ए-क़ातिल रह गई रस्म-ए-मसीहाई गई
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
रहीन-ए-ख़्वाब-ए-गुम-गश्ता हमारे सामने मत आ
जहाँ भर में हो वारफ़्ता हमारे सामने मत आ
हमीदा शाहीन
ग़ज़ल
रहीन-ए-मिन्नत-ओ-एहसान-ए-यार मैं भी हूँ
फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-फ़स्ल-ए-बहार मैं भी हूँ
अख़्तर ग्वालियारी
ग़ज़ल
तलव्वुन चश्म-ए-साक़ी में तग़य्युर वज़्-रिंदी में
हमारे मय-कदे में रोज़ पैमाने बदलते हैं