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ग़ज़ल
ख़्वाहिश है मिरा रक़्स-ए-जुनूँ देखे ज़माना
और उस की है तंबीह तमाशा नहीं करना
ख़ुर्शीद अम्बर प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
सौदा है कोई सर में तो फिर टूटेगी ज़ंजीर
दीवाना अभी रक़्स-ए-जुनूँ तेज़ किए जाए