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ग़ज़ल
कतरनें रंज की साँसों में गिरह डालती हैं
अब किसी रेशम-ओ-किम-ख़्वाब का क्या करना है
क़य्यूम ताहिर
नज़्म
26 जनवरी
बे-कस बरहनगी को कफ़न तक नहीं नसीब
वो व'अदा-हा-ए-अतलस-ओ-किम-ख़्वाब क्या हुए
साहिर लुधियानवी
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ग़ज़ल
मुक़द्दर में लिखा कर लाए हैं हम बोरिया लेकिन
तसव्वुर में हमेशा रेशम-ओ-कम-ख़्वाब रहता है
मुनव्वर राना
नज़्म
आज और कल
काँप उठता है तही-दस्त जवानों का ग़ुरूर
हुस्न जब रेशम-ओ-कम-ख़्वाब में तल जाता है
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
आज की बातें कल के सपने
ग़ैर से रेशम-ओ-कम-ख़्वाब की राहत पा कर
तू मुझे याद भी आएगी तो क्या आएगी
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
रेशम-ओ-अतलस-ओ-कम-ख़्वाब में पलने वाला
हम फ़क़ीरों से उलझने की हिमाक़त न करे