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ग़ज़ल
इदरीस बाबर
नज़्म
आया मौसम जाड़े का
रिम-झिम रिम-झिम रिम-झिम रिम-झिम पानी फिर दिन रात पड़ा
घर से बाहर काम को जाना लोगों को दुश्वार हुआ
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
समस्त
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ग़ज़ल
रिम-झिम है ये अश्कों की रवानी है कि क्या है
आ देख मिरी आँख में पानी है कि क्या है
सय्यद यासिर गीलानी
शेर
हम सहरा वाले हैं बदरा ये प्रेम की रिम-झिम और कहीं
आना है यहाँ तो आईयो तू जम कर झम-झम करने के लिए