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ग़ज़ल
खींचता तस्वीर क्यूँकर देख कर रोब-ए-जमाल
हाथ काँपा मर गई नानी वहीं बहज़ाद की
मास्टर बासित बिस्वानी
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ग़ज़ल
ख़ुदा ही जाने मैं आई हूँ कैसे गुलशन में
यहाँ तो ख़ार भी हुस्न-ओ-जमाल रखता है