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ग़ज़ल
पास-ए-नामूस ने फिर रुख़्सत-ए-रफ़्तन चाही
शोहरत-ए-हुस्न वही उल्फ़त-ए-रुस्वा है वही
ग़ुलाम भीक नैरंग
ग़ज़ल
शराब पी चुके बे-चारे को इजाज़त दो
खड़ा है देर से रुख़्सत को ऐ निगार लिहाज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
इतनी फ़ुर्सत दे कि रुख़्सत हो लें ऐ सय्याद हम
मुद्दतों इस बाग़ के साये में थे आज़ाद हम
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
समस्त