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ग़ज़ल
बैठे हैं सुनहरी कश्ती में और सामने नीला पानी है
वो हँसती आँखें पूछती हैं ये कितना गहरा पानी है
सलीम अहमद
ग़ज़ल
धड़कनें बन के जो सीने में रहा करता था
क्या अजब शख़्स था जो मुझ में जिया करता था
सलीम शुजाअ अंसारी
ग़ज़ल
सालिम यक़ीन-ए-अज़्मत-ए-सेहर-ए-ख़ुदा न तोड़
मायूस हो के कासा-ए-दस्त-ए-दुआ न तोड़
सलीम शुजाअ अंसारी
ग़ज़ल
कल नशात-ए-क़ुर्ब से मौसम बहार-अंदाज़ा था
कुछ हवा भी नर्म थी कुछ रंग-ए-गुल भी ताज़ा था
सलीम अहमद
ग़ज़ल
न बाहर ही लगे है दिल न घर जाने को जी चाहे
समझ में कुछ नहीं आता किधर जाने को जी चाहे
नादिम अशरफी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
तख़्ता-ए-दार पे लाई निगह-ए-नाज़ मुझे
'इश्क़ ने मान लिया साहिब-ए-ए'ज़ाज़ मुझे