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नज़्म
रक़ीब से!
हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तिरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा
अब मैं दिल को क्या समझाऊँ मुझ को भी समझाता जा
हफ़ीज़ जालंधरी
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रेख़्ता शब्दकोश
mai.n na samjhuu.n to bhalaa kyaa ko.ii samjhaa.e mujhe
मैं न समझूँ तो भला क्या कोई समझाए मुझेمَیں نَہ سَمْجُھوں تو بَھلا کیا کوئی سَمْجھائے مُجھے
ज़िद्दी आदमी के मुताल्लिक़ कहते हैं, आदमी ख़ुद ना समझना चाहे तो कोई नहीं समझा सकता
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शेर
देखने वाला कोई मिले तो दिल के दाग़ दिखाऊँ
ये नगरी अँधों की नगरी किस को क्या समझाऊँ
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा
अब मैं दिल को क्या समझाऊँ मुझ को भी समझाता जा
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
देखने वाला कोई मिले तो दिल के दाग़ दिखाऊँ
ये नगरी अँधों की नगरी किस को क्या समझाऊँ
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
इश्क़ ओ मोहब्बत क्या होते हैं क्या समझाऊँ वाइज़ को
भैंस के आगे बीन बजाना मेरे बस की बात नहीं