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ग़ज़ल
संदल जैसी रंगत पर क़ुर्बान सुनहरी धूप करूँ
रौशन माथे पर मैं वारूँ सारा हुस्न ख़ुदाई का
इरफ़ाना अज़ीज़
ग़ज़ल
मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर
पहाड़ों पर चमकती बिजलियाँ निकलीं उधर चल कर
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
सुब्ह नहाने जूड़ा खोले नाग बदन से आ लिपटें
उस की रंगत उस की ख़ुश्बू कितनी मिलती संदल में