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ग़ज़ल
क्या कहें उस को ब-जुज़ सर-गश्ता-ए-फ़हम-ओ-ख़िरद
जिस को दीवाना कहा दुनिया ने दाना हो गया
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
समस्त
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नज़्म
बुलबुल
तिरी तरह कोई सर-गश्ता-ए-जमाल नहीं
गुलों में महव है काँटों का कुछ ख़याल नहीं
मजनूँ गोरखपुरी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-हस्ती पे है मुश्किल मिरा माइल होना
मुझ को आता नहीं सर-गश्ता-ए-बातिल होना
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
प्रोग्रैम
और दिन को वो सर-गश्ता-ए-इसरार-ओ-मआ'नी
शहर-ए-हुनर-ओ-कू-ए-अदीबाँ में मिलेगा