aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "saughat shumara number 003 magazines"
जो हम-कलाम हो हम से उसी के होते हैंहम एक वक़्त में एक आदमी के होते हैं
इन दिनों मेरी ज़िंदगीएक वीराना थी
नींद भी गहरी है और गहरी है थोड़ी रात भीऔर सितम इस पर ये है कि सर्द हैं जज़्बात भी
ज़िक्र जब जब तुम्हारा निकलेगालफ़्ज़ लफ़्ज़ इस्ति'आरा निकलेगा
राख कुछ दिल में ज़ियादा है शरारा कम हैहम ने इस आइने में अक्स उतारा कम है
Shumara Number-003
साबिर मुल्तानी
Mar 1933तब्सिरतुल-अतिब्बा
July-September: Shumara Number-003
मोहम्मद सुहैल उमर
इक़बालियात, लाहोर
हकीम सय्यद नवाज़िश अली
Aug 1929हिकमत
महमूद सईद ख़ान
Mar 1954तिब्बी दुनिया
क़ासिम अली
May 1912अहमदी
Dec 1964रजिस्ट्रेशन फ़्रंट
शुमारा नम्बर-003
शबीहुल हसन
अलीगढ़ मैगज़ीन
Shumaara Number-003
वाजिद अली
रूहानी आ़लिम
अल्ताफ़ हसन क़ुरैशी
Jan 1965उर्दू डाइजेस्ट
Mar 1955तिब्बी दुनिया
Mar 1957तिब्बी दुनिया
अता काकवी
Jul, Sep 1982सफीना
शरार बी.ए
Mar 1935अनीस
Shumara Number-003, 004
अननोन एडिटर
मुनादी, नई दिल्ली
सुनो एक छोटी कहानी सुनोकहानी ये मेरी ज़बानी सुनो
कुछ तिरे इंतिज़ार ने माराकुछ दिल-ए-बे-क़रार ने मारा
एक दिन बीवी ने फ़रमाया तुम्हारी हर किताबफ़ालतू सामान है कूड़ा है रद्दी है जनाब
अम्मी तुम्हारे बा'दहर बार हम
इन दिनों तेज़ बहुत तेज़ है धारा मेरादोनों जानिब से ही कटता है किनारा मेरा
कल तक जो मेरे यार था बाक़ी नहीं रहातुझ पर जो ए'तिबार था बाक़ी नहीं रहा
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