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नज़्म
कौन है मुजरिम शहर-ए-इल्म की ताराजी का
बनाम-ए-इल्म-ओ-अदब जो पाया
अबदुल्लाह-इब्न-ए-उबय की दौलत अबू-जहल की वो ख़ासियत है
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
अदब के नाम पे
मज़ीद ये कि ये क़ज़्ज़ाक़-ए-शहर-ए-इल्म-ओ-अदब
समझ रहे हैं कि उन को अदब में नाम मिला
तज़ईन राज़
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ग़ज़ल
'सिब्तैन' शहर-ए-इल्म-ओ-अदब के नसीब में
होते हैं हम से अहल-ए-क़लम मुद्दतों के बाद
सिब्तैन शाहजहानी
नज़्म
ये बातें झूटी बातें हैं
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हम से जिस के तौर हों बाबा देखोगे दो एक ही और
कहने को तो शहर-ए-कराची बस्ती दिल-ज़दगाँ की है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दिल-आशोब
और शहर-ए-वफ़ा से दश्त-ए-जुनूँ कुछ दूर नहीं
हम ख़ुश न सही, पर तेरे सर का वबाल गया