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नज़्म
भटकी हुई बेवा
बरसात का मौसम रात अँधेरी दिल पे भी हैबत छाई हुई
था पेड़ नज़र आता न कोई घिर घिर घटा थी आई हुई
अमीर औरंगाबादी
ग़ज़ल
तुझ बेवफ़ा की आह कोई चाह क्या करे
दिल तुझ को दे के तू ही बता आह क्या करे
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
ग़ज़ल
अज़हर कमाल ख़ान
ग़ज़ल
बादा-ए-वहशत-असर से मस्त वीराने में था
एक आलम बे-ख़ुदी का तेरे दीवाने में था
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
देखा करो न तुम निगह-ए-सेह्र-फ़न के साथ
अच्छी नहीं ये छेड़ दिल-ए-पुर-मेहन के साथ
शेर सिंह नाज़ देहलवी
नज़्म
दीवाली
हो रहे हैं रात के दियों के हर सू एहतिमाम
सुब्ह से जल्वा-नुमा है आज दीवाली की शाम
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
पता मिलता नहीं दिल का कहाँ जिंस-ए-गिराँ रख दी
इसी से ज़िंदगानी थी ये शय हम ने कहाँ रख दी
शेर सिंह नाज़ देहलवी
नज़्म
काश
मुझ में ऐ यार मिरे कोई कमालात न देख
ख़्वाब वो हूँ जो कभी भी न हक़ीक़त में ढला