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ग़ज़ल
था शरीक-ए-बज़्म-ए-ग़म मैं हम-नवाँ कोई नहीं
दर्द-ए-दिल को हर्फ़ करने का बयाँ कोई नहीं
दिव्या जैन
ग़ज़ल
किसी के भूल जाने से मोहब्बत कम नहीं होती
मोहब्बत ग़म तो देती है शरीक-ए-ग़म नहीं होती
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा
सलामत मेरी गर्दन पर रहे बार-ए-अलम मेरा