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शेर
बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम
ठोकरें खा के मिरी आँखों में ख़्वाब आता है
मुनीर शिकोहाबादी
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ग़ज़ल
क्या 'अजब फ़र्त-ए-ख़ुशी से है जो गिर्यां आदमी
कसरत-ए-ग़म में नज़र आता है ख़ंदाँ आदमी