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शेर
कभी हो सका तो बताऊँगा तुझे राज़-ए-आलम-ए-ख़ैर-ओ-शर
कि मैं रह चुका हूँ शुरूअ' से गहे ऐज़्द-ओ-गहे अहरमन
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
शोर-ओ-ग़ुल आहें कराहें और अलम पैहम था 'शाद'
रात मेरे दिल की बस्ती का अजब मौसम था 'शाद'