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ग़ज़ल
रोने की ये शिद्दत है कि घबरा गईं आँखें
अश्कों की ये कसरत है कि तंग आ गईं आँखें
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
नज़्म
ख़ातून-ए-मशरिक़
इल्म से रहती है पाबंद-ए-शिकन जिस की जबीं
नाज़ से शानों पर उस की ज़ुल्फ़ लहराती नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नाला-ए-फ़िराक़
जा बसा मग़रिब में आख़िर ऐ मकाँ तेरा मकीं
आह! मशरिक़ की पसंद आई न उस को सरज़मीं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'शिफ़ा' ईसार में पाबंदी-ए-दैर-ओ-हरम कैसी
मिरे सज्दों में क़ैद-ए-आस्ताँ बाक़ी न रह जाए
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
ग़ज़ल
हम तो पाबंद-ए-मोहब्बत हैं 'शिफ़ा' अब क्या करें
वर्ना जो चाहा हुआ ये आह में तासीर थी