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नज़्म
सर-ए-वादी-ए-सीना
फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना
फिर रंग पे है शोला-ए-रुख़्सार-ए-हक़ीक़त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
दिल में जब एहसास का शो'ला फ़रोज़ाँ हो गया
नूर अफ़्शाँ हर चराग़-ए-बज़्म-ए-इम्काँ हो गया
राम कृष्ण मुज़्तर
ग़ज़ल
अब तो सीने में बजाए दिल-ए-सोज़ाँ 'फ़ारूक़'
एक शो'ला सा फ़रोज़ाँ है ग़ज़ल क्या कहिए
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
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ग़ज़ल
शो'ला-ए-'इश्क़ को ख़ुद बढ़ के हवा दी मैं ने
आग ख़ुद दामन-ए-हस्ती में लगा दी मैं ने
एजाज़ अली अरशद
ग़ज़ल
शो'ला-ब-कफ़ सा'अतों की सुर्ख़ी नज़र आ रही है
ज़ुल्मत-गज़ीदा निगाहें ख़ुश हैं सहर आ रही है
ग़ुलाम मुस्तफ़ा फ़राज़
ग़ज़ल
बाइस-ए-शोहरत है दुनिया में सुख़न-दानी मिरी
कार-फ़रमा शो'ला-रूख़ कोई समन-अंदाम था