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ग़ज़ल
जो नज़र किया मैं सिफ़ात में हुआ मुझ पे कब ये अयाँ नहीं
मिरी ज़ात ऐन की ऐन है वहाँ दूसरी का निशाँ नहीं
यासीन अली ख़ाँ मरकज़
ग़ज़ल
है मेरी ज़ात भी मिनजुमला-ए-सिफ़ात 'अतीक़'
अना-शनास भी मैं रूह-ए-इंकिसार भी मैं
ख़ान अतीक़ आफ़रीदी
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ग़ज़ल
सफ़र शबाब का गर उज़्र था तो अब सर-ए-शाम
क़ज़ा-ए-उम्र पढ़ें निय्यत-ए-नमाज़ करें
मुज़फ़्फ़र शिकोह
ग़ज़ल
'शिफ़ा' बढ़ो कि उफ़ुक़-दर-नज़र रजज़-बर-लब
शफ़क़ की आड़ में कुछ कारवाँ से गुज़रे हैं