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नज़्म
रक़ीब से!
आजिज़ी सीखी ग़रीबों की हिमायत सीखी
यास-ओ-हिरमान के दुख-दर्द के मअ'नी सीखे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
इंसानों की इज़्ज़त जब झूटे सिक्कों में न तौली जाएगी
वो सुब्ह कभी तो आएगी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
गुफ़्तुगू तू ने सिखाई है कि मैं गूँगा था
अब मैं बोलूँगा तो बातों में असर भी देना
मेराज फ़ैज़ाबादी
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ग़ज़ल
कहाँ से तू ने ऐ 'इक़बाल' सीखी है ये दरवेशी
कि चर्चा पादशाहों में है तेरी बे-नियाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नई ये वज़्अ शरमाने की सीखी आज है तुम ने
हमारे पास साहब वर्ना यूँ सौ बार बैठे हैं