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नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
पनघट की रानी
प्रेम का सागर बूँदें बन कर झूमा उमडा आए
सर से बरसे और सीने के दर्पन को चमकाए
साग़र निज़ामी
ग़ज़ल
मिरे साग़र में मय है और तिरे हाथों में बरबत है
वतन की सर-ज़मीं में भूक से कोहराम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
कर चुके जिंस-ए-मोहब्बत का वो सौदा 'साहिर'
जिन की हिर-फिर के नज़र सूद-ओ-ज़ियाँ तक पहुँचे
साहिर सियालकोटी
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ग़ज़ल
लुत्फ़-ए-कलाम ये कि हसीं सुन के हों फ़िदा
'सफ़दर' वो शे'र क्या है कि जिस में मज़ा न हो
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
आप थे 'सफ़दर' सर-ए-महफ़िल किसी के शिकवा-संज
आप कहते थे कि सीने में हमारे दिल नहीं
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
कलाम-ए-आशिक़ाना सुन के हर शाइ'र ये कहता है
तुम्हारी नज़्म 'सफ़दर' बढ़ गई है नज़्म-ए-'बेदिल' पर