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ग़ज़ल
मैं नहीं तौबा-शिकन जाता हूँ लेकिन मै-कदा
देखने को नर्गिस-ए-मख़मूर इक मय-नोश की
डॉ. हबीबुर्रहमान
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नज़्म
ख़ुद-फ़रोशी
बदनाम हो मय-ख़ाना भी साक़ी भी हो रुस्वा
वो बादा-ए-मय-ख़ाना-शिकन बेच रहे हैं
पयाम फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
बनावट कैफ़-ए-मय से खुल गई उस शोख़ की 'आतिश'
लगा कर मुँह से पैमाने को वो पैमाँ-शिकन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ज़र्रे में सूरज और सूरज में ज़र्रे रौशन रहता है
अब मन में साजन रहते हैं और साजन में मन रहता है
क़य्यूम नज़र
ग़ज़ल
मैं क्या क्या जुरआ-ए-ख़ूँ पी गया पैमाना-ए-दिल में
बला-नोशी मिरी क्या इक मय-ए-साग़र शिकन तक है
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
बला की बेड़ियाँ उल्फ़त में पहनीं जान-ए-मन दो दो
दिल-ए-बेताब अपना एक ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन दो दो