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नज़्म
गुम-शुदा आदमी का इंतिज़ार
तह-ए-आतिश-ए-सुर्ख़-रू वो सवाली
कि जिस ने हथेली पे सरसों जमा ली
चन्द्रभान ख़याल
ग़ज़ल
बे-गुनाही जुर्म था अपना सो इस कोशिश में हूँ
सुर्ख़-रू मैं भी रहूँ क़ातिल भी शर्मिंदा न हो
सुरूर बाराबंकवी
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ग़ज़ल
मौज-ए-नसीम-ए-सुब्ह न जोश-ए-नुमू से था
जो फूल सुर्ख़-रू था ख़िज़ाँ के लहू से था
राग़िब मुरादाबादी
नज़्म
नास्टैल्जिया
अयाग़-ए-जिस्म-ओ-जाँ इक बे-ख़ुदी में जब लबा-लब था
चनारों के बदन में सुर्ख़-रू मस्ती दहकती थी
बिलाल अहमद
शेर
हम-साए का सुख तो उस के ख़्वाब का पूरा होना है
तुम पर रिक़्क़त तारी हो तो रो लो लेकिन शोर न हो