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नज़्म
दो बूँद पानी
इस लिए कि ख़त्म हो जाए तो स्ट्रगल ही ख़त्म हो जाए
ज़िंदगी को जारी तो रखना है इंतिक़ाम
नसरीन अंजुम सेठी
ग़ज़ल
शुग़्ल-ए-मय-परस्ती गो जश्न-ए-ना-मुरादी था
यूँ भी कट गए कुछ दिन तेरे सोगवारों के
साहिर लुधियानवी
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विषय
संघर्ष
संघर्ष
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ग़ज़ल
मजलिस-ए-वाज़ में क्या मेरी ज़रूरत नासेह
घर में बैठा हुआ शुग़ल-ए-मय-ओ-मीना न करूँ
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
नज़्म
मज़दूर औरतें
तू और शुग़्ल-ए-रामिश-ओ-रक़्स-ओ-रबाब-ओ-रंग
क्या तेरे साज़ में भी दहकती है कोई आग
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
मानिंद-ए-शम्अ गिर्या है क्या शुग़्ल-ए-तुरफ़ा-तर
हो जाती रात उस में बला से बसर तो है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
लब-ए-दरिया मुझे लहरों से यूँही चहल करने दो
कि अब दिल को इसी इक शुग़्ल-ए-बे-मअ'नी में राहत है
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
बुत-परस्ती की बहुत 'सय्याह' अब कर याद हक़
शुग़्ल-ए-मौला में रहे बंदा वही है काम का